Monday, January 1, 2018

साहिर लुधियानवी: तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम

तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम

मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न पूछिए
अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम

लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद
लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम

उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले
गो दब गए हैं बार-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी से हम

गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से
पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम

अल्लाह-रे फ़रेब-ए-मशिय्यत कि आज तक
दुनिया के ज़ुल्म सहते रहे ख़ामुशी से हम

साहिर लुधियानवी: फ़नकार

मैं ने जो गीत तिरे प्यार की ख़ातिर लिक्खे
आज उन गीतों को बाज़ार में ले आया हूँ

आज दुक्कान पे नीलाम उठेगा उन का
तू ने जिन गीतों पे रखी थी मोहब्बत की असास

आज चाँदी के तराज़ू में तुलेगी हर चीज़
मेरे अफ़्कार मिरी शाइरी मेरा एहसास

जो तिरी ज़ात से मंसूब थे उन गीतों को
मुफ़लिसी जिंस बनाने पे उतर आई है

भूक तेरे रुख़-ए-रनगीं के फ़सानों के एवज़
चंद अशिया-ए-ज़रूरत की तमन्नाई है

देख इस अरसा-ए-गह-ए-मेहनत-ओ-सरमाया में
मेरे नग़्मे भी मिरे पास नहीं रह सकते

तेरे जल्वे किसी ज़रदार की मीरास सही
तेरे ख़ाके भी मिरे पास नहीं रह सकते

आज उन गीतों को बाज़ार में ले आया हूँ
मैं ने जो गीत तिरे प्यार की ख़ातिर लिक्खे