Sunday, February 17, 2019

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना: सब कुछ कह लेने के बाद

सब कुछ कह लेने के बाद
कुछ ऐसा है जो रह जाता है,
तुम उसको मत वाणी देना।

वह छाया है मेरे पावन विश्वासों की,
वह पूँजी है मेरे गूँगे अभ्यासों की,
वह सारी रचना का क्रम है,
वह जीवन का संचित श्रम है,
बस उतना ही मैं हूँ,
बस उतना ही मेरा आश्रय है,
तुम उसको मत वाणी देना।

वह पीड़ा है जो हमको, तुमको, सबको अपनाती है,
सच्चाई है-अनजानों का भी हाथ पकड़ चलना सिखलाती है,
वह यति है-हर गति को नया जन्म देती है,
आस्था है-रेती में भी नौका खेती है,
वह टूटे मन का सामर्थ है,
वह भटकी आत्मा का अर्थ है,
तुम उसको मत वाणी देना।

वह मुझसे या मेरे युग से भी ऊपर है,
वह भावी मानव की थाती है, भू पर है,
बर्बरता में भी देवत्व की कड़ी है वह,
इसीलिए ध्वंस और नाश से बड़ी है वह,

अन्तराल है वह-नया सूर्य उगा लेती है,
नये लोक, नयी सृष्टि, नये स्वप्न देती है,
वह मेरी कृति है
पर मैं उसकी अनुकृति हूँ,
तुम उसको मत वाणी देना।

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना: ईश्वर

बहुत बडी जेबों वाला कोट पहने
ईश्वर मेरे पास आया था,
मेरी मां, मेरे पिता,
मेरे बच्चे और मेरी पत्नी को
खिलौनों की तरह,
जेब में डालकर चला गया
और कहा गया,
बहुत बडी दुनिया है
तुम्हारे मन बहलाने के लिए।

मैंने सुना है,
उसने कहीं खोल रक्खी है
खिलौनों की दुकान,
अभागे के पास
कितनी जरा-सी पूंजी है
रोजगार चलाने के लिए।

Saturday, February 9, 2019

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना: चाँदनी की पाँच परतें

चाँदनी की पाँच परतें,
हर परत अज्ञात है । 

एक जल में, 
एक थल में, 
एक नीलाकाश में । 
एक आँखों में तुम्हारे झिलमिलाती, 
एक मेरे बन रहे विश्वास में । 
क्या कहूँ , कैसे कहूँ..... 
कितनी जरा सी बात है । 

चाँदनी की पाँच परतें, 
हर परत अज्ञात है । 

एक जो मैं आज हूँ , 
एक जो मैं हो न पाया, 
एक जो मैं हो न पाऊँगा कभी भी, 
एक जो होने नहीं दोगी मुझे तुम, 
एक जिसकी है हमारे बीच यह अभिशप्त छाया । 
क्यों सहूँ ,कब तक सहूँ.... 
कितना कठिन आघात है । 

चाँदनी की पाँच परतें, 
हर परत अज्ञात है ।