Saturday, February 9, 2019

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना: चाँदनी की पाँच परतें

चाँदनी की पाँच परतें,
हर परत अज्ञात है । 

एक जल में, 
एक थल में, 
एक नीलाकाश में । 
एक आँखों में तुम्हारे झिलमिलाती, 
एक मेरे बन रहे विश्वास में । 
क्या कहूँ , कैसे कहूँ..... 
कितनी जरा सी बात है । 

चाँदनी की पाँच परतें, 
हर परत अज्ञात है । 

एक जो मैं आज हूँ , 
एक जो मैं हो न पाया, 
एक जो मैं हो न पाऊँगा कभी भी, 
एक जो होने नहीं दोगी मुझे तुम, 
एक जिसकी है हमारे बीच यह अभिशप्त छाया । 
क्यों सहूँ ,कब तक सहूँ.... 
कितना कठिन आघात है । 

चाँदनी की पाँच परतें, 
हर परत अज्ञात है ।

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