Monday, August 1, 2016

ग़ालिब: न था कुछ तो ख़ुदा था

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न मैं होता तो क्या होता।
हुआ जब गम से यूँ बेहिश, तो गम क्या सर के कटने का,
ना होता गर जुदा तन से, तो जानु पर धरा होता।
हुई मुद्दत कि ग़ालिब मर गया, पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता।
जानु  = घुटना

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